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प्रकृति माँ

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प्रस्तुत पुस्तक एक बाल नाटिका है जिसके माध्यम से बाल/बालकों को प्रेरित किया गया है कि प्रकृति को दूषित होने तथा क्षरण से कैसे बचाया जा सकता है। नाटक एक ऐसी विद्या है जो सीधी भावों को जाग्रत करती है इसलिए लेखक ने नाटक का सहारा लेकर प्रकृति तथा भाव के परस्पर सम्बन्ध को प्रदर्शित

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प्रस्तुत पुस्तक एक बाल नाटिका है जिसके माध्यम से बाल/बालकों को प्रेरित किया गया है कि प्रकृति को दूषित होने तथा क्षरण से कैसे बचाया जा सकता है। नाटक एक ऐसी विद्या है जो सीधी भावों को जाग्रत करती है इसलिए लेखक ने नाटक का सहारा लेकर प्रकृति तथा भाव के परस्पर सम्बन्ध को प्रदर्शित किया है शास्त्रों में हमने आदिशक्ति को माँ के रूप में नमन किया है। वर्तमान में शहरीकरण की होड़ में जो प्रकृति का शोषण हो रहा है उनका बड़ा भयावह दर्शन कराया गया है और फिर संदेश दिया गया है कि यदि हमने प्रकृति संरक्षण अपनी माता की भांति नहीं किया तो भविष्य विनाशकारी हो सकता है। बाल मन को प्रेरित करने के लिए प्रत्येक शिक्षा संस्थान में इस नाटिका का मंचन हो तो हम बड़े प्रभावी ढंग से पर्यावरण के संरक्षण का सन्देश भी बालकों को दे सकेंगे।

BOOK DETAILS
  • Hardcover:
  • Publisher:
  • Language: NA
  • ISBN-10: NA
  • Dimensions:
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