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पंचकोशात्मक विकास के पथ पर

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शिक्षा का विचार नित्य नूतन - चिर - पुरातन है । जितनी आवश्यकता प्राचीन ज्ञान के तर्कसंगत भाग को अंगीकार कर उनके प्रति श्रद्धा बनाए रखने की है , उतनी ही नई बातों को स्वीकार करने की भी है। ' व्यक्तित्व के सर्वाङ्गीण विकास ' की भारतीय अवधारणा इसी प्रकार का शाश्वत विचार है ।

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शिक्षा का विचार नित्य नूतन – चिर – पुरातन है । जितनी आवश्यकता प्राचीन ज्ञान के तर्कसंगत भाग को अंगीकार कर उनके प्रति श्रद्धा बनाए रखने की है , उतनी ही नई बातों को स्वीकार करने की भी है। ‘ व्यक्तित्व के सर्वाङ्गीण विकास ‘ की भारतीय अवधारणा इसी प्रकार का शाश्वत विचार है । यह आज के प्रचलित Personality Development से भिन्न है। डॉ . मधुश्री सावजी ने अत्यन्त परिश्रमपूर्वक भारतीय विचार पर आधारित पंचकोशात्मक विकास की इस संकल्पना पर इस पुस्तिका की रचना मूलत : मराठी में की है यह उसका हिंदी अनुवाद है।

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  • Language: NA
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