शिक्षा का विचार नित्य नूतन – चिर – पुरातन है । जितनी आवश्यकता प्राचीन ज्ञान के तर्कसंगत भाग को अंगीकार कर उनके प्रति श्रद्धा बनाए रखने की है , उतनी ही नई बातों को स्वीकार करने की भी है। ‘ व्यक्तित्व के सर्वाङ्गीण विकास ‘ की भारतीय अवधारणा इसी प्रकार का शाश्वत विचार है । यह आज के प्रचलित Personality Development से भिन्न है। डॉ . मधुश्री सावजी ने अत्यन्त परिश्रमपूर्वक भारतीय विचार पर आधारित पंचकोशात्मक विकास की इस संकल्पना पर इस पुस्तिका की रचना मूलत : मराठी में की है यह उसका हिंदी अनुवाद है।
पंचकोशात्मक विकास के पथ पर
शिक्षा का विचार नित्य नूतन – चिर – पुरातन है । जितनी आवश्यकता प्राचीन ज्ञान के तर्कसंगत भाग को अंगीकार कर उनके प्रति श्रद्धा बनाए रखने की है , उतनी ही नई बातों को स्वीकार करने की भी है। ‘ व्यक्तित्व के सर्वाङ्गीण विकास ‘ की भारतीय अवधारणा इसी प्रकार का शाश्वत विचार है । यह आज के प्रचलित Personality Development से भिन्न है। डॉ . मधुश्री सावजी ने अत्यन्त परिश्रमपूर्वक भारतीय विचार पर आधारित पंचकोशात्मक विकास की इस संकल्पना पर इस पुस्तिका की रचना मूलत : मराठी में की है यह उसका हिंदी अनुवाद है।
Weight | 46.000 g |
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Dimensions | 21.3 × 14 × 0.2 cm |
Language | हिन्दी |
Blinding | |
Pages | 32+2 |
Author |
Dr. Madhu Sanjeev Savji |
Publisher |
Vidya Bharti Sanskriti Shiksha Sansthan |
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