राष्ट्र के नवोत्थान में इस युग के महान विचारक पं॰ दीनदयाल ने एक नया जीवन दर्शन एकात्म मानववाद के नाम से दिया जिसमें उन्होंने भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परम्पराओं को युगानुकूल नूतन व्याख्या प्रस्तुत करके एक नूतन दृष्टिकोण देश के कर्णधारों के सामने रखा। गहन चिंतन के पश्चात उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि राष्ट्र का नवनिर्माण तो भारतीय परम्पराओं के अनुरूप होगा जिसके लिए तदनुरूप शिक्षातंत्र खड़ा करना आवश्यक होगा क्योंकि शिक्षा की जितनी व्यापक और गहरी व्यवस्था होगी समाज उतना ही अधिक पुष्ट होगा। भारतीय शिक्षा को शुद्ध राष्ट्रीय आधारों पर प्रतिष्ठित करने हेतु पंडित जी का यह शिक्षा सिद्धान्त बड़ा मौलिक है और प्रत्येक शिक्षाविद् को इसका अध्ययन आवश्यक है।
एकात्ममानववादी शिक्षा दर्शन (पं॰ दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रणीत)
राष्ट्र के नवोत्थान में इस युग के महान विचारक पं॰ दीनदयाल ने एक नया जीवन दर्शन एकात्म मानववाद के नाम से दिया जिसमें उन्होंने भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परम्पराओं को युगानुकूल नूतन व्याख्या प्रस्तुत करके एक नूतन दृष्टिकोण देश के कर्णधारों के सामने रखा। गहन चिंतन के पश्चात उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि राष्ट्र का नवनिर्माण तो भारतीय परम्पराओं के अनुरूप होगा जिसके लिए तदनुरूप शिक्षातंत्र खड़ा करना आवश्यक होगा क्योंकि शिक्षा की जितनी व्यापक और गहरी व्यवस्था होगी समाज उतना ही अधिक पुष्ट होगा। भारतीय शिक्षा को शुद्ध राष्ट्रीय आधारों पर प्रतिष्ठित करने हेतु पंडित जी का यह शिक्षा सिद्धान्त बड़ा मौलिक है और प्रत्येक शिक्षाविद् को इसका अध्ययन आवश्यक है।
Weight | 200.000 g |
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Dimensions | 21.5 × 13.7 × 1 cm |
Language | हिन्दी |
ISBN | ISBN 978-81-929823-7-3 |
Blinding | |
Pages | 168+2 |
Author |
Dr. Rakesh Dube |
Publisher |
Vidya Bharti Sanskriti Shiksha Sansthan |
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